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आज आयुर्वेदिक घरेलु उपाय ईस स्तम्भ मे अनेक घरेलू नुस्के बताने जा रहा हूँ जो बहुत से हम अपने जीवन मे प्रयोग कर रहेँ हैँ कुछ के बारे मे सुना है तो कुछ को किसी किताब या अखबार मेँ लिखा पढा है ,यूँ जानिये कि ईन के किसी भी पहलू से हम अनजान नहीँ हैँ। मगर थोङे बहुत कम समय व अल्प ज्ञान के चलते हम ईनका उपयोग नही कर सके या हर किसी के मन मे ईनके प्रती किसी प्रकार कि संका भी रही होगी । मगर सच यह है कि हमारे जिवन मे ईन कि महत्वपूर्ण भूमिका है अत:ईनका लाभ अवश्य उठाना चाहिये।

आप अपनी सेहत बनाने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले पेट साफ करने की जरूरत है। पेट में कब्ज रहेगा तो कितने ही पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें, लाभ नहीं होगा। भोजन समय पर तथा चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि पाचन शक्ति ठीक बनी रहे, फिर पौष्टिक आहार या औषधि का सेवन करना चाहिए।

यदि व्यक्ति चैत में गुड़, बैसाख में तेल, जेठ में यात्रा, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादों में दही, क्वाँर में करेला, कार्तिक में मट्ठा अगहन में जीरा, पूस में धनिया, माघ में मिश्री और फागुन में चना, ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए कष्टकारक होती हैं। जिस घर में इनसे बचा जाता है, उस घर में वैद्य कभी नहीं आता क्योंकि लोग स्वस्थ बने रहते हैं।

आचार्य चरक ने कहा है कि पुरुष के शरीर में वीर्य तथा स्त्री के शरीर में ओज होना चाहिए, तभी चेहरे पर चमक व कांति नजर आती है और शरीर पुष्ट दिखता है।हम यहाँ कुछ ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक के लोग सेवन कर लाभ उठा सकते हैं और बलवान बन सकते हैं-

पोषण के बारे में आर्युवेद की राय-

आर्युवेद में मानते है कि हर एक भोज्य पदार्थ का गुण-प्रभाव होता है। भोज्य पदार्थ शरीर के लिए अच्छे, हानिकारक या उदासीन हो सकते हैं। यह उन चीज़ों के गुण, व्यक्ति- प्रकृती मौसम और स्थानीय पर्यावरण पर निर्भर करता है।

सात धातु-

आर्युवेद कहता है कि सात बुनियादी तत्व मिल कर शरीर की धातु बनाते हैं। ये हैं 1-रस (अन्नरस), 2-रक्त (खून), 3-मॉंस (पेशियॉं), 4-मेदा (वसा), 5-अस्थि (हडि्डयॉं), 6-मज्जा और 7-शुक्र। खाने की अलग-अलग चीज़ें अलग-अलग धातुओं को विशिष्ट ढंग से प्रभावित करती हैं। (आज की चिकित्सीय समझ के अनुसार इस तरह का वर्गीकरण और अवधारणाएँ काफी अजीब लग सकतीं हैं)।

शरीर के गठन में तीन तरह के दोष - शरीर के गठन में तीन तरह के दोष 1-वात, 2-पित्त 3-कफ की प्रवृति होती है। हॉलाकि ये दोष नही बल्कि शरीर गठन का स्वरूप है।

शरीर के गठन में पॉंच मूल तत्व यानि पंच महाभूत - ये पॉंच मूल तत्वों- यानि पंच महाभूत यानि 1-हवा, 2-आग, 3-पानी, 4-धरती और 5-आकाश के विशिष्ट गठजोड़ों के मिलन के कारण होती है। आहार और कुछ एक गतिविधियों के कारण ये दोष बढ़ या घट सकते हैं। इनके बढ़ने या घटने से गड़बड़ियॉं और बीमारियॉं हो जाती हैं। हर व्यक्ति का शारीरिक गठन एक या ज़्यादा दोषों से प्रभावित होता है।

खाने की चीज़ें शरीर में दोषों को कम या ज़्यादा करते हैं- खाने की सभी चीज़ें कुछ हद तक इन दोषों को कम या ज़्यादा करते हैं। जैसे कि

चावल और दूध कफ बढ़ाते हैं,

भुनी हुई मूँगफली वात बढ़ाती है।

आम और पपीता पित्त बढ़ाते हैं।

परन्तु इन सबका असर किसी भी व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्ति या दोषक गठन से बदल जाता है। ये अवधारणाएँ बहुत लोकप्रिय हैं रुग्णहितके लिये पहले इनका ध्यान रखना चाहिए। उपयुक्त आहार तय करने से पहले कसी भी व्यक्ति की दोष प्रकृति पहचानना लाभदायक होता है। आर्युर्वेद के अध्याय में आप दोषों के बारे में और पढ़ेंगे।

ठण्डा और गर्म-

लोग मानते हैं कि खाने की कुछ चीज़ें गर्म (ऊष्ण) होती हैं और कुछ ठण्डे (शीत)। यह आर्युवेद की इस मजसे मेल खाता है कि खाने की अलग-अलग चीज़ों में शीतोष्ण असर होते हैं। इसका खाने की चीज़ के तपमान से कुछ लेनादेना नहीं होता परन्तु यह शरीर पर उनके असर से सम्बन्धित होता हे। इस लिए खाने की कुछ चीज़ें जिनमें जलन होती है, पसीना आता हे या प्यास लगती है ऊष्ण कहलाते हैं। दूसरों में इनसे उलटे असर होते हैं।

भोजन में छ प्रबल (रस) होते हैं - भोजन में छ प्रबल (रस) होते हैं जो प्रभावित हैं। ये छ: रस हैं- 1-मधुर (मीठा), 2-तीखा (काटु), 3-कटू (चरपरा), 4-अम्ल (खट्टा), 5-लवण (नमक युक्त), 6-कशाया (कसैला)।

भोज्य पदार्थ जिनमें प्रबल मधुर रस होता है वो शरीर के लिए काफी उपयोगी और पोषक होते हैं (जैसे - अनाज, दालें, दूध और शहद)। फलों में भी मधुर व अम्ल रस होता हे और फल शरीर के लिए अच्छे होते हैं। लवण, कशाया और काटू रसों से और अधिक विशिष्ट असर होते हैं। ये रस एक हद तक शरीर के लिए ज़रूरी होते हैं। परन्तु बहुत अधिक मात्रा में लेने पर ये नुकसान पहुँचाते हैं। उदाहरण के लिए मिर्च से आँख, नाक, श्वसनी और पेट से स्राव बहने लगते हैं। इनसे कफ कम होता है। चरपरी चीज़ों जैसे मिर्च, चटनी और काली मिर्च से हम इसका अनुभव कर सकते हैं।

कशाया पदार्थ, कसैले होते हैं जैस कि आंवला और हर्र हर्र पाउडर को दॉंत साफ करने में इस्तेमाल करते हुए हम कसैला स्वाद महसूस कर सकते हैं। यह साथ जोड़ने, सुखाने और सख्त बनाने के लिए असरकारी है। लवण यानि नमक युक्त चीज़ों से पाचक रस स्रावित होते हैं इनसे खानेमें स्वाद बढता हे। लेकिन ज़्यादा नमक खाने से त्वचा और बाल सूखे हो जाते हैं, बाल झड़ने लगते हैं और बुढ़ापा जल्दी आता है। इससे रक्तचाप बढनेका भी धोखा है। अधिकांश पौधों की पत्तियॉं तीखी यानि कड़वी होती हैं और उनमें एलकालॉएड मूलतत्व होते हैं ये कम मात्रा में तो दवाई का काम करते हैं और ज़्यादा मात्रा में ज़हर का। इसीलिए मनुष्यों को इनका स्वाद पसन्द नहीं आता। पाचकता में कुछ चीज़ें गुरू चीज़ें हैं मुश्किल से पचती हैं गोश्त, मटन चावल, दूध, काले चने सेसम बंगाली चने । इन्हें कम या मध्यम मात्रा में लेना चाहिए। और पाचकता में कुछ चीज़ें (लघु) चीज़ें हैं आसानी से पचती हैं मूँग, लस्सी, बकरी का दूध, शहद, गन्ने का रस, तरबूज आदि लघु चीज़ें हैं। इनका सेवन खुलकर किया जा सकता हे। ये खासकर बच्चों, बीमार लोगों और बूढ़े लोगों के लिए यह समस बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनका पाचन तंत्र बहुत मज़बूत नहीं होता।

खाने की स्निग्ध और सूखी चीज़ें - खाने की कुछ चीज़ें, उनमें होने वाले तेल और नमी के कारण, मुलायम और चिकनाई वाली होती हैं। इन्हें स्निग्ध कहते है। और कुछ जिनमें तेल और नमी नहीं होती वो सूखी कहते है। सभी अनाज और दाले रूक्ष होती हैं इसलिए उनके साथ स्निग्ध चीज़ों जैसे घी या तेल, लहसून, प्याज़ सब्ज़ियों और ताजे फलों को लेना ज़रूरी होता है। रूक्ष पदार्थ पाखाने को कड़ा बनाते हैं और स्निग्ध पदार्थ इसे मुलायम करते हैं। यह बहुत आम अनुभव है कि चने के आटे (बेसन) से बनी चीज़ें बहुत ज़्यादा खाने से पाखाना कड़ा हो जाता है। सूखी चीज़ें वात दोष बढ़ाती हैं। मुलायम और चिकनाई प्रदान करने वाली चीज़ें कफ बढ़ाती हैं।

सभी आयुर्वेद प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

Monday, 2 March 2015

चना -चने का सत्तू और चने का साग

                  चना -चने का सत्तू और चने का साग
सुबह का नास्ता अंकुरित
सत्तू एक प्रकार का देशज व्यंजन है, जो भूने हुए जौ और चने को पीस कर बनाया जाता है। बिहार में यह काफी लोकप्रिय है और कई रूपों में प्रयुक्त होता है। सामान्यतः यह चूर्ण के रूप में रहता है जिसे पानी में घोल कर या अन्य रूपों में खाया अथवा पिया जाता है। सत्तू के सूखे (चूर्ण) तथा घोल दोनों ही रूपों को 'सत्तू' कहते हैं।
·        सर्वप्रथम चने को पानी में भीगने के लिये रख दिया जाता है।
·        उसके पश्चात इन्हें सुखाने के बाद भूना जाता है।
·        इसके बाद इसे भूने हुए मसालों, यथा जीराकाली मिर्च इत्यादि के साथ पीसा जाता है।
·        सत्तू सिर्फ चने का ही नहीं जौ का भी बनाया जाता है। जौ के सत्तू के लिये भी उपर्युक्त प्रक्रिया ही जौ के साथ की जाती है सत्तू का मीठा घोल, सत्तू का नमकीन, सत्तू का घोल, सत्तू की रोटी, लिट्टी चोखा।
आयुर्वेद के अनुसार सत्तू का सेवन गले के रोग, उल्टी, आंखों के रोग, भूख, प्यास और कई अन्य रोगों में फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पाया जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है।
गुणकारी सत्तू के लाभ सत्तू पीना सबके लिए फायदेमंद है सत्तु अक्सर सात प्रकार के धान्य मिलाकर बनाया जाता है .ये है मक्का , जौ , चना , अरहर ,मटर , खेसरी और कुलथा .इन्हें भुन कर पीस लिया जाता है
सत्तू पीना सबके लिए फायदेमंद
सत्तू के लाभ-
चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मक्का वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। यह हृदय को शक्ति प्रदान करता है और शरीर को लू लगने से बचाता है।
वहीं जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हलका, कब्जनाशक, कफ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा और लेखन होता है। यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। हालांकि जोड़ों के दर्द के रोगी को इसके सेवन से बचना चाहिए।

चना, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा, चावल, सिंघाड़ा, राजगीरा, गेहूं आदि को बालू में भूनने के बाद उसको चक्की में पीसकर बनाए गए चूर्ण (पावडर) को सत्तू कहा जाता है। ग्रीष्मकाल शुरू होते ही भारत में अधिकांश लोग सत्तू का प्रयोग करते हैं। खासकर दूर-दराज के छोटे क्षेत्रों व कस्बों में यह भोजन का काम करता है। 
चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मक्का वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार सभी का अपना-अपना गुणधर्म है| इन सभी प्रकार के सत्तू का अकेले-अकेले या सभी को किसी भी अनुपात में मिलाकर सेवन किया जा सकता है।
सत्तू के विभिन्न नाम-
भारत की लगभग सभी आर्य भाषाओं में सत्तू शब्द का प्रयोग मिलता है, जैसे पाली प्राकृत में सत्तू, प्राकृत और भोजपुरी में सतुआ, कश्मीरी में सोतु, कुमाउनी में सातु-सत्तू, पंजाबी में सत्तू, सिन्धी में सांतू, गुजराती में सातु तथा हिन्दी में सत्तू एवं सतुआ।
यह इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है। गुड़ का सत्तू व शकर का सत्तू दोनों अपने स्वाद के अनुसार लोगों में प्रसिद्ध हैं। सत्तू एक ऐसा आहार है जो बनाने, खाने में सरल है, सस्ता है, शरीर व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और निरापद भी है।
विभिन्न प्रकार के सत्तू-
जौ का सत्तू :- जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हलका, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा और लेखन होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।
जौ-चने का सत्तू :- चने को भूनकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ चने का सत्तू है। इस सत्तू को पानी में घोलकर, घी-शकर मिलाकर पीना ग्रीष्मकाल में बहुत हितकारी, तृप्ति दायक, शीतलता देने वाला होता है।
जौ
चावल का सत्तू :- चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।
जौ-गेहूँ चने का सत्तू :- चने की दाल एक किलो, गेहूँ आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूँ, जौ, चने का सत्तू है।
सत्तू सेवन विधि :इनमें से किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में देशी शक्कर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें। नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरा व सेंधा नमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें। इच्छा के अनुसार इसे पतला या गाढ़ा रख सकते हैं। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है।
सत्तू के लाभ : चिकित्सा विज्ञान की कई खोजों में यह दावा किया गया है कि पेट की बीमारियों तथा मधुमेह के रोगियों के लिए चने का सत्तू रामबाण है।
कीटनाशक युक्त जहरीले बहुब्राण्ड शीतल पेय पीने से शरीर में कई बीमारियां होती हैं, लेकिन चने के सत्तू का सेवन ख़ासकर गर्मी के मौसम में पेट की बीमारियों तथा शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
जोड़ों के दर्द के रोगी को इसके सेवन से बचना चाहिए - ख़ासकर यह मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण है। कई डॉक्टर कहते हैं कि चने के सत्तू का सेवन हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं, लेकिन जोड़ों के दर्द के रोगी को इसके सेवन से बचना चाहिए।  
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                     चने का साग-1

आपने सरसों का साग तो खाया होगा लेकिन क्या चने का साग खाया है? इन दिनों बाजार में चने की भाजी उपलब्ध हैं. सर्दियों की रात में खाने में चने के साग के साथ गैंहूं मक्का या बाजरे की रोटी का स्वाद सिर्फ खाकर ही जाना जा सकता है.
चने का साग चने के हरे पत्तों से बनाया जाता है. चने के पौधे जब बड़े हो जाते हैं फूल आने से पहले, तब उन पौधों को ऊपर से थोड़ा थोड़ा तोड़ा जाता है और इन तोड़े हुये हरे पत्तों से चने की भाजी बनाई जाती है,और पौधे को को भी लाभ होता है, इस तरह तोड़ने से पौधा और घना हो जाता है ज्यादा फलता है.

चने की भाजी - 250 ग्राम
मक्का या बाजरे का आटा - 2 टेबल स्पून
हरी मिर्च - 2-3
अदरक - 1 इंच लम्बा टुकड़ा (1 छोटी चम्मच पेस्ट)
टमाटर -2
तेल या घी - 1 टेबल स्पून
हींग - 1-2 पिंच
जीरा - आधा छोटी चम्मच
नमक - स्वादानुसार ( 3/4 छोटी चम्मच)
लाल मिर्च - 1/4 छोटी चम्मच
विधि - How to make Chana ka saag

चने की भाजी को साफ कीजिये, बड़ी डंडियों को हटा दीजिये, मुलायम पत्तों को सब्जी के लिये तोड़ कर अलग कर लीजिये. पत्त्तों को साफ पानी से 2 बार धो कर थाली में रखिये, और थाली को तिरछा रख कर अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये. इन पत्तों को अब बारीक कतर लीजिये.
हरी मिर्च के डंठल तोड़िये, धोइये और बारीक कतर लीजिये. अदरक छीलिये, धोइये और बारीक कतर लीजिये. टमाटर भी धोकर बारीक कतर लीजिये.
कतरी हुई भाजी और एक कप पानी भगोने या पतीले में डाल कर गैस फ्लेम पर रखिये, भाजी के मुलायम होने पर, मक्के या बाजरे के आटे को एक कप पानी में घोलिये (गुठले नहीं रहने चाहिये) और भाजी में डाल कर मिलाइये, सब्जी गाड़ी होने पर पानी और मिलाया जा सकता है, नमक और लाल मिर्च भी मिला दीजिये, सब्जी में उबाल आने तक चमचे से चलाते रहिये. उबाल आने के बाद सब्जी को धीमी गैस फ्लेम पर 8-10 मिनिट पकाइये, सब्जी चमचे से गिराने पर एक साथ गिरे, एकसार हो जाये, सब्जी बन कर तैयार है.
किसी छोटी कढ़ाई में घी या तेल डालकर गरम कीजिये, गरम घी में हींग जीरा डालकर तड़का लगाईये, हरी मिर्च, अदरक और टमाटर डालकर मसाले को भूनिये अब टमाटर के नरम होने तक पकाइये और इस मसाले को पकी हुई भाजी में मिला दीजिये. सब्जी में गरम मसाला डालकर मिलाइये.
चने की भाजी बन कर तैयार हो गई है, गरमा गरमा चने की भाजी (Chana ka Saag) को मक्का की रोटी या बाजरा की रोटी के साथ परोसिये और खाइये, स्वाद बड़ाने के लिये साथ में गुड़ भी रखिये.
4-5 सदस्यों के लिये
समय - 30 मिनिट
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                    चने का साग-2

पंजाब के खाने की बात हो और साग की बात न की जाए तो कुछ मजा नहीं आएगा। यूं तो सभी जानते हैं कि साग सरसों का बनता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि चने का साग भी बनता है।
सर्दियों की रात में चने के साग के साथ गेहूं, मक्का या बाजरे की रोटी खाई जाए तो खाने का मजा ही आ जाता है। इसके लिए जरूरी है कि सिर्फ चने का यह साग बनता कैसे है? आइए जानते हैं चंडीगढ़ की रवलीन से-
चने का साग चने के हरे पत्तों से बनाया जाता है। चने के पौधे जब बड़े हो जाते हैं फूल आने से पहले, तब उन पौधों को ऊपर से थोड़ा-थोड़ा तोड़ लिया जाता है और इन तोड़े हुए हरे पत्तों से चने की भाजी बनाई जाती है। इस तरह तोड़ने से पौधे को भी लाभ होता है। वह और घना हो जाता है और ज्यादा फलता है।
आवश्यक सामग्रीः
चने की भाजी - 250 ग्राम
मक्का या बाजरे का आटा - 2 टेबल स्पून
हरी मिर्च - 2-3
अदरक - 1 इंच लम्बा टुकड़ा (1 छोटी चम्मच पेस्ट)
टमाटर -2
तेल या घी - 1 टेबल स्पून
हींग - 1-2 पिंच
जीरा - आधा छोटी चम्मच
नमक - स्वादानुसार ( 3/4 छोटी चम्मच)
लाल मिर्च - 1/4 छोटी चम्मच से कम
गरम मसाला - 1/4 छोटी चम्मच
विधि-

चने की भाजी को साफ कीजिये, बड़ी डंडियों को हटा दीजिये, मुलायम पत्तों को सब्जी के लिये तोड़ कर अलग कर लीजिये।
पत्त्तों को साफ पानी से 2 बार धो कर थाली में रखिये, और थाली को तिरछा रख कर अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये. इन पत्तों को अब बारीक कतर लीजिये।
हरी मिर्च के डंठल तोड़िये, धोइये और बारीक कतर लीजिये। अदरक छीलिये, धोइये और बारीक कतर लीजिये। टमाटर भी धोकर बारीक कतर लीजिये।
कतरी हुई भाजी और एक कप पानी भगोने या पतीले में डाल कर गैस फ्लेम पर रखिये, भाजी के मुलायम होने पर, मक्के या बाजरे के आटे को एक कप पानी में घोलिये (गुठले नहीं रहने चाहिये) और भाजी में डाल कर मिलाइये।
सब्जी गाड़ी होने पर पानी और मिलाया जा सकता है, नमक और लाल मिर्च भी मिला दीजिये, सब्जी में उबाल आने तक चमचे से चलाते रहिये।
उबाल आने के बाद सब्जी को धीमी गैस फ्लेम पर 8-10 मिनिट पकाइये।
किसी छोटी कढ़ाई में घी या तेल डालकर गरम कीजिये, गरम घी में हींग जीरा डालकर त्ड़का लगाईये, हरी मिर्च, अदरक और टमाटर डालकर मसाले को भूनिये अब टमाटर के नरम होने तक पकाइये और इस मसाले को पकी हुई भाजी में मिला दीजिये। सब्जी में गरम मसाला डालकर मिलाइये।

चने की भाजी बन कर तैयार हो गई है, गरमा गरमा चने की भाजी को मक्का की रोटी या बाजरा की रोटी के साथ परोसिये और खाइये, स्वाद बड़ाने के लिये साथ में गुड़ भी रखिये।
रोचक और अजीब संग्रह आपके लिए..... togawas.com
सभी को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

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