चना - सर्दियों में रोज खाएंगे तो बादाम से ज्यादा असरदार है
चना
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चना बहुत पौष्टिक |
रोजाना
के खाने के लिये अनेक तरह के जैसे,दाल, कढ्ढी,
बहुत सि मिठाईयाँ,नमकिन आदि मे हम सिधे या
अन्य किसी न किसी रुप मे प्रयोग करते है ।यहाँ तक कि भगवान को भी चने व गुङ का भोग
लगाया जाता है। बल व बुद्दी के दाता हनुमानजी का तो प्रिय प्रसाद ही चना व गुङ है।
मगर चने के गुण जानने के बाद हमेँ पता चलता है कि इससे अत: ईसकी फसल कहाँ व किस
प्रकार ईसकि खेती कहाँ कहाँ होती है ईसके बारे मे भी थोङा बहुत ज्ञान रखना आवश्यक
है।
आज
ईस स्तम्भ मे अनेक घरेलू नुस्के बताने जा रहा हूँ जो बहुत से हम अपने जीवन मे
प्रयोग कर रहेँ हैँ कुछ के बारे मे सुना है तो कुछ को किसी किताब या अखबार मेँ
लिखा पढा है ,यूँ जानिये कि ईन के किसी भी पहलू से हम अनजान नहीँ हैँ। मगर थोङे बहुत कम
समय व अल्प ज्ञान के चलते हम ईनका उपयोग नही कर सके या हर किसी के मन मे ईनके
प्रती किसी प्रकार कि संका भी रही होगी । मगर सच यह है कि हमारे जिवन मे ईन कि
महत्वपूर्ण भूमिका है अत:ईनका लाभ अवश्य उठाना चाहिये।
चना
बहुत पौष्टिक होता है। चना चाहे भूना हुआ हो या अंकुरित किया हुआ, इसे खाना
शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। चने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन और विटामिन्स
पाए जाते हैं। चने में 27 और 28 फीसदी
फॉस्फोरस और आयरन होता है। यह न केवल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करते हैं बल्कि
हीमोग्लोबीन बढा कर किडनियों को भी नमक की अधिकता से साफ करते हैं। एक कटोरा चना
खाने से 28 ग्राम रेशा आपके शरीर में जाता है , जिससे पेट संबन्धी सारी शिकायते दूर रहती हैं साथ ही कब्ज हो या फिर पेट
का कैंसर, दोनों ही नहीं होते। चने के कई किस्में
आती हैं, काला,पीला,छोटे चने,काबुली,सफेद जो मोटे
होते हैं।| चने की दो प्रजातियां
होती है –
1-काला चना
2-काबुली चना |
आज हम आपको काले चने के विषय में बताएंगे |
आयुर्वेद
मे माना गया है कि चना और चने की दाल दोनों के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है।
चने
को गरीबों का बादाम कहा जाता है, क्योंकि ये सस्ता होता है। इसमें
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम,
आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। लेकिन
इसी सस्ती चीज में बड़ी से बड़ी बीमारियों की लड़ने की क्षमता है। चना खाने से अनेक
रोगों की चिकित्सा हो जाती है। चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी
बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है। सर्दियों में चने के
आटे का हलवा कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने
वाले रोगों में व अस्थमा में फायदेमंद होता है। सर्दियों में रोजाना 50 ग्राम चना खाना बादाम से ज्यादा लाभकारी होता है। घोड़े की ताकत से तो आप
समझ ही सकते हैं कि उसका भोजन चना कितना ताकतवर होता है । कहावत है चना खाओ घोड़े
सी ताकत पाओ
चने को अंकुरित करने की विधि :-
क्या आप जानते हैं अंकुरित
आहार ?
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अंकुरित चना |
सुबह का नास्ता अंकुरित चना और सत्तू देश
भर में सुबह के नास्ते का अलग अलग रिवाज है। अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह
नाश्ते के समय ही करना चाहिये।अंकुरित आहार शरीर को नवजीवन देने वाला अमृतमय आहार
कहा गया है।
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´ और `के´) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम,
आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
अंकुरीकरण की प्रक्रिया में
अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते
हैं।
अंकुरित आहार को अमृताहर कहा गया है
अंकुरित आहार भोजन की सप्राण खाद्यों की श्रेणी में आता है।
यह पोषक तत्वों का श्रोत मन गया है ।
अंकुरित आहार न सिर्फ हमें उन्नत रोग प्रतिरोधी व उर्जावान बनाता है बल्कि शरीर का
आंतरिक शुद्धिकरण कर रोग मुक्त भी करता है । अंकुरित आहार अनाज या दालों के वे बीज
होते जिनमें अंकुर निकल आता हैं इन बीजों की अंकुरण की प्रक्रिया से इनमें रोग
मुक्ति एवं नव जीवन प्रदान करने के गुण प्राकृतिक रूप से आ जाते हैं।
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´ और `के´) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम,
आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला
अमृत आहार कहा गया है अर्थात् यह मनुष्य को पुनर्युवा, सुन्दर स्वस्थ और रोगमुक्त बनाता है।
यह महँगे फलों और सब्जियों की अपेक्षा
सस्ता है, इसे बनाना खाना बनाने
की तुलना में आसान है इसलिये यह कम समय में कम श्रम से तैयार हो जाता है।
बीजों के अंकुरित होने के पश्चात्
इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में
वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है।
खड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से
उनमें उपस्थित अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सी' की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है लेकिन
अंकुरित होने पर लगभग दोगुना विटामिन सी इनसे पाया जा सकता है।
अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी
कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी१,
राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी२ व नायसिन की मात्रा दोगुनी हो जाती
है।
इसके अतिरिक्त 'केरोटीन' नामक पदार्थ की
मात्रा भी बढ़ जाती है, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण
करता है। अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड
व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अंकुरित करने की प्रक्रिया में अनाज पानी
सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका
रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है और वे बच्चों व
वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
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भूना हुआ चना |
अंकुरित करने के लिये चना, मूँग, गेंहू, मोठ, सोयाबीन, मूँगफली,
मक्का, तिल, अल्फाल्फा,
अन्न, दालें और बीजों आदि का प्रयोग होता है।
अंकुरित भोजन को कच्चा, अधपका और बिना नमक आदि के प्रयोग
करने से अधिक लाभ होता है। एक दलीय अंकुरित (गेहूं, बाजरा,
ज्वार, मक्का आदि) के साथ मीठी खाद्य (खजूर,
किशमिश, मुनक्का तथा शहद आदि) एवं फल लिए जा
सकते हैं।
द्विदलीय अंकुरित (चना, मूंग, मोठ, मटर, मूंगफली, सोयाबीन,
आदि) के साथ टमाटर, गाजर, खीरा, ककड़ी, शिमला मिर्च,
हरे पत्ते (पालक, पुदीना, धनिया, बथुआ, आदि) और सलाद,
नींबू मिलाकर खाना बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यदायक होता है।
इसे कच्चा खाने बेहतर है क्यों कि
पकाकर खाने से इसके पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुण में कमी आ जाती है।
अंकुरित करने से पूर्व बीजों से मिटटी, कंकड़ पुराने रोगग्रस्त बीज निकलकर साफ कर लें।
प्रातः नाश्ते के रूप में अंकुरित अन्न का प्रयोग करें । प्रारंभ में कम मात्रा
में लेकर धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ाएँ। अंकुरित अन्न अच्छी तरह चबाकर खाएँ। नियमित
रूप से इसका प्रयोग करें। वृद्धजन, जो चबाने में असमर्थ हैं
वे अंकुरित बीजों को पीसकर इसका पेस्ट बनाकर खा सकते हैं। ध्यान रहे पेस्ट को भी
मुख में कुछ देर रखकर चबाएँ ताकि इसमें लार अच्छी तरह से मिल जाय।
सर्वप्रथम
चने को साफ करके प्रातःकाल एक शीशे
के जार में भर लें शीशे के जार में बीजों की सतह से लगभग चार गुना पानी भरकर भीगने
दें इतने
पानी में भिगोएं जितना पानी चना सोख ले। एवं रात में साफ, मोटे,
गीले कपडे़ या उसकी थैली में बांधकर लटका दें। गर्मी में 12 घंटे और सर्दी के मौसम में 18 से 24 घंटों के बाद भिगोकर गीले कपड़ों में बांधने से दूसरे, तीसरे दिन उसमें अंकुर निकल आते हैं। गर्मी में थैली में आवश्यकतानुसार
पानी छिड़कते रहना चाहिए। इस प्रकार चने अंकुरित हो जाएंगे।
अंकुरित चनों का नाश्ता एक उत्तम टॉनिक है। अंकुरित चनों में कुछ
व्यक्ति स्वाद के लिए कालीमिर्च, सेंधानमक, अदरक एवं नींबू का रस भी मिलाते हैं परन्तु यदि अंकुरित चने को बिना किसी
मिलावट के साथ खाएं तो अधिक लाभकारी है।
चने
में अंकुरण के 7
दिन बाद तक मिनरल्स और विटामिन्स भर पूर मात्रा में रहते हैं।
इन्हें 7 दिनों के अन्दर ही खा लेना अच्छा है। अंकुरित दाने
सलाद के रूप में कच्चे या उबाले हुये दोनों तरीके से खाये जा सकते हैं, या आप इनसे अपनी मन पसन्द कोई डिश भी बनाकर खा सकते हैं। सलाद के रूप में
कच्चे या उबाले हुये दोनों तरीके से खाये जा सकते हैं।
भोजन में चना :- रोटी के आटे में चोकर मिला हुआ हो और सब्जी या दाल में चने की चुनी यानी
चने का छिलका मिला हुआ हो तो यह आहार बहुत सुपाच्य और पौष्टिक हो जाता है। चोकर और चने में सब प्रकार के पोषक
तत्व होते हैं। चना गैस नहीं
करता, शरीर में विषाक्त वायु हो तो अपान वायु के रूप में
बाहर निकाल देता है। इससे पेट साफ और हलका रहेगा, पाचन शक्ति
प्रबल बनी रहेगी, खाया-पिया अंग लगेगा, जिससे शरीर चुस्त-दुरुस्त और शक्तिशाली बना रहेगा। मोटापा, कमजोरी, गैस, मधुमेह, हृदय रोग, बवासीर, भगन्दर आदि
रोग नहीं होंगे।
बेजड़ या मिक्सी रोटी - गेहूँ- चना-जौ
: गेहूँ, चना और जौ तीनों समान
वजन में जैसे तीनों 2-2 किलो लेकर मिला लें और मोटा पिसवा कर,
छाने बिना, छिलका चोकरसहित आटे की रोटी खाना
शुरू कर दें। इसे बेजड़ या मिक्सी रोटी कहते हैं।
चना बहुत पौष्टिक होता है। चना चाहे भूना हुआ हो या अंकुरित किया
हुआ, इसे खाना शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। चने में
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम,
आयरन और विटामिन्स पाए जाते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं चने
खाने से होने के कुछ विशेष फायदों के बारे में....
खाज-खुजली,त्वचा संबंधित बीमारियां में फायदा - चने के आटे
की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक
खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं।
कुष्ट रोग में लाभ - अंकुरित चना 3 साल तक खाते
रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है।
त्वचा का कालापन- लगभग 12 चम्मच बेसन,
3 चम्मच दही या दूध, थोड़ा सा पानी सभी को
मिलाकर पेस्ट सा बनाकर पहले चेहरे पर मले और फिर सारे शरीर पर मलने के लगभग 10
मिनट बाद स्नान करें तथा स्नान में साबुन का उपयोग न करें। इस
प्रकार का उबटन करते रहने से त्वचा का कालापन दूर हो जाएगा।
चेहरे का सौंदर्यवर्धक- चना के बेसन में नमक मिलाकर अच्छी तरह
गौन्दकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर मलने से त्वचा में झुर्रियां नहीं आती
हैं और चेहरा सुन्दर रहता है।
चेहरे की झांई के लिए- रात्रि में 2 बड़े चम्मच
चने की दाल को आधा कप दूध में भिगोकर रख दें। सुबह दाल को पीसकर उसी दूध में मिला
लें। फिर इसमें एक चुटकी हल्दी और 6 बूंदे नींबू की मिलाकर
चेहरे पर लगाकर रखें। सूखने पर चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें। इस पैक को सप्ताह
में तीन बार लगाने से चेहरे की झाईयां दूर हो जाती हैं।
सांस नली व कफ रोग दूर- भुने हुए चने रात में सोते समय चबाकर गर्म दूध
पीने से सांस नली के अनेक रोग व कफ दूर हो जाता हैं।
मधुमेह में बहुत लाभ - 25 ग्राम
काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। यदि
समान मात्रा में जौ चने की रोटी भी दोनों समय खाई जाए तो डायबिटीज में जल्दी फायदा होगा।
नपुंसकता समाप्त -
चने को पानी में भिगो दें उसके बाद चना निकालकर पानी को पी जाएं।
शहद मिलाकर पीने से किन्हीं भी कारणों से उत्पन्न नपुंसकता समाप्त हो जाती है।
वीर्य का पतलापन दूर व बढ़ोतरी - चीनी के बर्तन में रात को चने
भिगोकर रख दे। सुबह उठकर खूब चबा-चबाकर खाएं इसके लगातार सेवन करने से वीर्य में
बढ़ोतरी होती है व पुरुषों की कमजोरी से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। भीगे
हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
धातु पुष्ट हो -
दस ग्राम चने की भीगी दाल और 10 ग्राम शक्कर
दोनों मिलाकर 40 दिनों तक खाने से धातु पुष्ट हो जाती है।
धातु पुष्टि हो - 1 मुट्ठी सेंके हुए चने या भीगे हुए चने और 5
बादाम खाकर दूध पीने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य गाढ़ा हो
जाता है।
नपुंसकता-
भीगे हुए चने सुबह-शाम चबाकर खाने से ऊपर से बादाम की गिरी खाने से
मैथुन-शक्ति बढ़ती है और नंपुसकता खत्म होती है।
अण्डकोष वृद्धि-
चने के बेसन को पानी और शहद में मिलाकर अण्डकोष की सूजन पर लगाने से
लाभ होता है।
श्वेतप्रदर -
प्रातः सेंके हुए चने पीसकर उसमें खाण्ड मिलाकर खाएं। ऊपर से एक
गिलास दूध में एक चम्मच देशी घी मिलाकर पियें। इससे श्वेतप्रदर लाभ होता है। श्वेत प्रदर या
ल्यूकोरिआ या लिकोरिआ (Leukorrhea) या "सफेद पानी
आना" स्त्रिओं का एक रोग है जिसमें स्त्री-योनि से असामान्य मात्रा में सफेद
रंग का गाढा और बदबूदार पानी निकलता है और जिसके कारण वे बहुत क्षीण तथा दुर्बल हो
जाती है।
बार-बार पेशाब व मूत्र से संबंधित समस्या - बार-बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने
हूए चनों का सेवन करना चाहिए। गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से संबंधित समस्या में
राहत मिलती है।
हिचकी में फायदा- हिचकी की समस्या ज्यादा परेशान कर रही हो तो
चने के पौधे के सूखे पत्तों का धुम्रपान करने से शीत के कारण आने वाली हिचकी तथा
आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
पीलिया में फायदा- पीलिया में चने की दाल लगभग 100 ग्राम को दो गिलास जल में भिगोकर उसके बाद दाल पानी में से निकलाकर 100
ग्राम गुड़ मिलाकर 4-5 दिन तक खाएं राहत
मिलेगी।
पीलिया -
चना का सत्तू पीलिया रोग में लाभदायक है। 1 मुट्ठी
चने की दाल को 2 गिलास पानी में भिगो दें। फिर दाल को
निकालकर बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर 3 दिन तक खाना चाहिए।
प्यास लगने पर दाल का वहीं पानी पीना चाहिए। इससे पीलिया रोग नष्ट हो जाता है।
जुकाम में फायदा-
गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक
हो जाता है।
बवासीर में फायदा- रोजाना
भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।
कब्ज -
1 या 2 मुट्ठी चनों को धोकर रात को भिगो दें। सुबह
जीरा और सोंठ को पीसकर चनों पर डालकर खाएं। घंटे भर बाद चने भिगोये हुए पानी को भी
पीने से कब्ज दूर होती है।
निम्न रक्तचाप-
20 ग्राम काला चना और 25 दाने किशमिश या
मुनक्का रात को ठण्डे पानी में भिगो दें। सुबह रोजाना खाली पेट खाने से निम्न
रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) में लाभ होगा और साथ ही चेहरे की चमक भी बढ़ जाती है।
सफेद दाग-
मुट्ठी भर काले चने और 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण
(हरड़, बहेड़ा, आंवला) को 125 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। कम से कम 12 घंटों के
बाद इन चनों को मोटे कपड़े में बांधकर रख दें और बचा हुआ पानी कपडे़ की पोटली के
ऊपर डाल दें। फिर 24 घंटे के बाद पोटली को खोल दें अब तक इन
चनों में से अंकुर निकल आयेंगे। यदि किसी मौसम में अंकुर न भी निकले तो चनों को
ऐसे ही खा लें। इस तरह से अंकुरित चनों को चबा-चबाकर लगातार 6 हफ्तों खाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
शरीर का वजन बढ़ाने के लिए- लगभग 50 ग्राम की
मात्रा में चने की दाल को लेकर शाम को 100 मिलीलीटर कच्चे
दूध में भिगोकर रख दें। अब इस दाल को सुबह उठकर किशमिश और मिश्री में मिलाकर अच्छी
तरह से चबाकर खायें। इसका सेवन लगातार 40 दिनों तक करना
चाहिए।
रात
को सोते समय थोड़े से देशी चने लेकर उनको पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उठकर शरीर की लम्बाई बढ़ती है - गुड़ के साथ इन चनों को
रोजाना खूब चबाकर खाने से शरीर की लम्बाई बढ़ती है। चनों की मात्रा शरीर की पाचन
शक्ति के अनुसार बढ़ानी चाहिए। इन चनों को 2-3 तीन महीने तक
खाना चाहिए।
शरीर का वजन कम करने के लिए- उबले चने को सिर्फ नमक के साथ मिला
कर खाने से आपका वजन भी कम हो सकता है। वैसे भी कहा गया है कि `जो खाये चना वो रहे बना`|
लूह नहीं लगती,शरीर ठंडा रहता है - चने का
सत्तू लाभदायक होता है कारण छिलके सहित चने का बनता हैपूरी तरह से फाइबर होता
है।काला चना का सत्तू गर्मियों में खाने से लूह नहीं लगती,शरीर
ठंडा रहता है।
जले हुए भाग पर लगाने से
तुरंत आराम - चने को दही के साथ पीसकर शरीर के जले हुए भाग
पर लगाने से तुरंत आराम आ जाता है |
खांसी में लाभ - रात
को सोते समय थोड़े भुने हुए चने खाकर ऊपर से गुड़ खा लें,इससे
खांसी में लाभ होता है |
उलटी में लाभ - चने
को छः गुने जल में भिगोकर दूसरे दिन प्रातःकाल उसका पानी छानकर 10-12 मिली की मात्रा में पीने से उलटी में लाभ होता
है |
गर्भवती
को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
कब्ज दूर होती - एक
या दो मुट्ठी चने धोकर रात को भिगो दें | सुबह पिसा हुआ जीरा
और सौंठ चनों पर डालकर खाएं,घंटे भर बाद चने भिगोए हुए पानी
को भी पी लें, इस प्रयोग से कब्ज दूर होती है |
मानसिक तनाव व उन्माद में लाभ - रात को चने की दाल भिगों दें सुबह पीसकर चीनी व
पानी मिलाकर पीएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है।
जलोदर रोग दूर -
50 ग्राम चने उबालकर मसल लें। यह जल गर्म-गर्म लगभग एक महीने तक
सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
जलोदर रोग
क्या है ? उदरगुहा में द्रव संचय होकर उदर (पेट) का बड़ा दिखना जलोदर (Ascites ) कहलाता है। यह अशोथयुक्त (Noninflammatory)
होता है। यह रोग नही बल्कि हृदय, वृक्क,
यकृत इत्यादि में उत्पन्न हुए विकारों का प्रधान लक्षण है। यकृत के
प्रतिहारिणी (portal) रक्तसंचरण की बाधा हमेशा तथा विशेष रूप
से दिखाई देनेवाले जलोदर का सर्वसाधारण कारण है। यह बाधा कर्कट (Cancer) और सूत्रणरोग (Cirrhosis) जैसे यकृत के अन्दर कुछ
विकारों में तथा आमाशय, ग्रहणी, अग्न्याशय
इत्यादि एवं विदर (Fissure) में बढ़ी हुई लसीका ग्रंथियों
जैसे यकृत के बाहर के कुछ विकारों में प्रतिहारिणी शिराओं पर दबाव पड़ने से
उत्पन्न होती है।
यकृत के विकारों में प्रथम जलोदर होकर
पश्चात् उदरगुहागत शिराओं पर द्रव का दबाव पड़ने से पैरों पर सूजन आती है।
हृदय-रोगों में प्रथम पैरों पर सूजन, दिल में धड़कन, साँस की कठिनाई इत्यादि लक्षण मिलते
हैं और कुछ काल के पश्चात् जलोदर उत्पन्न होता है। वृक्कविकार में प्रथम देह शीथ
का, विशेषतया प्रात:काल चेहरे तथा आँखों पर सूजन दिखाई देने
का इतिहास मिलता है और कुछ काल के पश्चात् जलोदर होता है। इन सामान्य कारणों के
अतिरिक्त कभी-कभी तरुणों में जीर्ण क्षय पेटझिल्लीशोथ (chronic tuberculous
peritonitis) और अधिक उम्र के रोगियों में कर्कट एवं दुष्ट रक्तक्षीणता
(pernicious anaemia) भी जलोदर के कारण हो सकते हैं।
सभी आयुर्वेद प्रेमियोँ को मेरा यानि
पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
Thanks for sharing your post.
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